शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

घांघू के वीर शहीद लक्खूसिंह राठौड़

31 अगस्त 1989 का दिन। श्रीलंका की धरती। समय सुबह के 10 बजे। भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर श्रीलंका भेजी गईशांति सेना का एक कमांडिंग ऑफिसर अपनी छुट्टियां बीताने घर जारहा था। सिपाहियों का एक दल उसे छोड़ने के लिए साथ था। अचानकएक तरफ की दीवार के पीछे से धड़ाधड़ गोलीबारी शुरू हो गई। चूंकिसभी सैनिक पैदल थे और खुले में थे, दूसरी तरफ लिट्टे के उग्रवादीदीवारों के पीछे। सैनिकों के पास बचाव का कोई मौका था। फिर भीसैनिकों ने साहस का परिचय देते हुए मुकाबला शुरू कर दिया। एकसैनिक जिसके पास रॉकेट लांचर था (यह भारी और ताकतवर हथियार अत्यंत मजबूत कद-काठी वाले जवान को ही दिया जाता है ), अपने कमांडिंग ऑफिसर और अन्य साथियों को बचाने के लिए सबसे आगेआया और उग्रवादियों ने उसका शरीर गोलियों से छलनी कर दिया।कर्तव्य-पथ पर जूझते इस वीर सैनिक ने भारत माता की जय बोलते हुए कर्तव्य पथ पर अपना जीवन पुष्पअर्पित कर दिया। इस दौरान दो अन्य जवान भी शहीद हुए, एक जवान का पांव काटना पड़ा।

इस वीर प्रसविनी भारत भूमि पर मातृभूमि के लिए मर-मिटने वालों की शहादत पर मातम नहीं मनाए जाते। चूरूजिले के गांव घांघू में जन्मे भारतीय सेना की पैराशूट रेजीमेंट के 10 पैरा कमांडो हवलदार लक्खूसिंह राठौड़ कीशहादत की कहानी सुनकर हरेक घांघूवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अपने पति की बाट जौहती वीरांगना की आंखों ने अपने कंत की देशभक्ति और साहस को नमन किया लेकिन दो नन्हे-नन्हे अबोध बालक उस समय तोसमझ भी नहीं पाए कि उनका पिता सदा-सदा के लिए इस मातृभूमि के काम गया।
मजबूत कद-काठी, गठीले बदन और खुले दिल के मालिक
लक्खूसिंह का जन्म ऎतिहासिक गांव घांघू के गढ मेंबैरीसाल सिंह के यहां हुआ। घुड़वसवारी में दक्ष तथा शतरंत के शौकीन लक्खूसिंह ने अपनी नौकरी के दौरान हीनिशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में पुरस्कार हासिल किया था। मरहूम राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकालके दौरान लक्खूसिंह उनके अंगरक्षक रहे और 1992 में रूसी राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचोव के भारत दौरे में वे उनकेअंगरक्षक रहे। इस नौजवान ने बड़े ही अदब और शान के साथ नौकरी की और महज 32 साल की आयु में इसीअदब के साथ हम सबको छोड़कर इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम लिखवा कर चल दिए। गांव के बुजुर्गों, नौजवानों और बच्चों के समान रूप से चहेते रहे लक्खूसिंह की जिंदादिली को आज भी घांघू के लोग खासी शिददतसे याद करते हैं। ऎसे जिंदादिल इंसान को, उसकी वतनपरस्ती को, उसकी शहादत को कोटि-कोटि नमन।