इस वीर प्रसविनी भारत भूमि पर मातृभूमि के लिए मर-मिटने वालों की शहादत पर मातम नहीं मनाए जाते। चूरूजिले के गांव घांघू में जन्मे भारतीय सेना की पैराशूट रेजीमेंट के 10 पैरा कमांडो हवलदार लक्खूसिंह राठौड़ कीशहादत की कहानी सुनकर हरेक घांघूवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अपने पति की बाट जौहती वीरांगना की आंखों ने अपने कंत की देशभक्ति और साहस को नमन किया लेकिन दो नन्हे-नन्हे अबोध बालक उस समय तोसमझ भी नहीं पाए कि उनका पिता सदा-सदा के लिए इस मातृभूमि के काम आ गया।
मजबूत कद-काठी, गठीले बदन और खुले दिल के मालिक लक्खूसिंह का जन्म ऎतिहासिक गांव घांघू के गढ मेंबैरीसाल सिंह के यहां हुआ। घुड़वसवारी में दक्ष तथा शतरंत के शौकीन लक्खूसिंह ने अपनी नौकरी के दौरान हीनिशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में पुरस्कार हासिल किया था। मरहूम राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकालके दौरान लक्खूसिंह उनके अंगरक्षक रहे और 1992 में रूसी राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचोव के भारत दौरे में वे उनकेअंगरक्षक रहे। इस नौजवान ने बड़े ही अदब और शान के साथ नौकरी की और महज 32 साल की आयु में इसीअदब के साथ हम सबको छोड़कर इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम लिखवा कर चल दिए। गांव के बुजुर्गों, नौजवानों और बच्चों के समान रूप से चहेते रहे लक्खूसिंह की जिंदादिली को आज भी घांघू के लोग खासी शिददतसे याद करते हैं। ऎसे जिंदादिल इंसान को, उसकी वतनपरस्ती को, उसकी शहादत को कोटि-कोटि नमन।