शनिवार, 30 जनवरी 2010

घांघू सरपंच के लिए तीन प्रत्याशी मैदान में, 10 वार्ड पंच निर्विरोध निर्वाचित

घांघू, 30 जनवरी। ग्राम पंचायत घांघू के सरपंच पद के लिए शनिवार को भरे गए पांच नामांकनों में से दो के अंतिम समय तक नाम वापस लेने के बाद अब तीन प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गए हैं जबकि 10 वार्ड पंच निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए जाने के बाद पांच वार्डों के पंच पद के लिए 10 प्रत्याशी मैदान में डटे हुए हैं।
जोनल मजिस्ट्रेट रेखाराम गोदारा ने बताया कि शनिवार को सरपंच पद के लिए पांच प्रत्याशियों ने अपने नाम दाखिल किए, जिनमें से निर्धारित समय तक ओमप्रकाश व सुभाष द्वारा अपने नामांकन वापस ले लिए गए। अब सरपंच चुनाव के लिए बलराम, रावताराम व लिखमाराम मैदान में रह गए हैं।
उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत के सभी 15 वार्डों में से 10 वार्ड पंच एक ही चुनाव प्रत्याशी के मैदान में रहने से निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए हैं। उन्होंने बताया कि वार्ड 04 से परमाराम, वार्ड 05 से जब्बार खां, वार्ड 06 से आमीना, वार्ड 07 से प्रमोद सेवदा, वार्ड 08 से चंदा देवी, वार्ड 9 से अर्जुुन सिंह, वार्ड 10 से पृथ्वी सिंह, वार्ड 11 से परमेश्वरी, वार्ड 14 से जगदीश व वार्ड 15 से चिमनाराम निर्विरोध पंच निर्वाचित हुए।
शेष पंाच वार्डों में दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। वार्ड एक में राधादेवी व सुमन, वार्ड दो में सोना व मोहरी, वार्ड तीन में भगवानाराम भादू व पोकरराम सिहाग, वार्ड 12 में परमेश्वरी व किस्तूरी तथा वार्ड 13 में सीमा कंवर व सावित्राी वार्ड पंच के लिए चुनाव मैदान में हैं।
रिटर्निंग अधिकारी सत्यगोपाल ने शनिवार को निर्विरोध निर्वाचित पंचों को शपथ दिलाई तथा एक फरवरी को उप सरपंच चुनाव के लिए आहूत होने वाली ग्राम पंचायत की प्रथम बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। सरपंच व पंच पदों के लिए मतदान रविवार को होगा।
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रविवार, 17 जनवरी 2010

सदियों का इतिहास समेटे है घांघू की धरती

चूरू से मलसीसर और टमकोर जाने वाली निजी बसों से घांघू उतर कर शायद ही किसी को यह महसूस हो कि महज 600-700 घरों की आबादी वाला यह गांव जिला मुख्यालय चूरू और जयपुर जैसे महानगर से भी पहले का सैकड़ों वर्षों का इतिहास अपने भीतर समेटे हुए है। गांव के संस्थापक राजा घंघरान की बेटी लोकदेवी जीण और पुत्रा हर्ष के अद्भुत स्नेह की कहानी भारतीय फिल्म नगरी बाॅलीवुड के फिल्मकारों को भी आकर्षित कर चुकी है।

इतिहासकारों की नजर से

एक हजार से भी अधिक साल पुराने इस गांव के सुनहरे अतीत पर यूं तो अनेक इतिहासकारों ने अपनी कलम चलाई है लेकिन इनमें कर्नल टाॅड, बांकीदास, ठाकुर हरनामसिंह, नैणसी, डाॅ दशरथ शर्मा, गोविंद अग्रवाल के नाम खासतौर पर शामिल है। क्याम खां रासो के मुताबिक, चाहुवान के चारों पुत्रों मुनि, अरिमुनि, जैपाल और मानिक में से मानिक के कुल में सुप्रसिद्ध चैहान सम्राट पृथ्वीराज पैदा हुआ जबकि मुनि के वंश में भोपालराय, कलहलंग के बाद घंघरान पैदा हुआ जिसने बाद में घांघू की स्थापना की।
गोविंद अग्रवाल कृत चूरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास के मुताबिक, एक बार राजा घंघरान शिकार खेलने गया। राजा मृग का पीछा करते हुए लौहगिरि( वर्तमान लोहार्गल) तक जा पहुंचा जहां मृग अदृश्य हो गया। राजा वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। निकट ही एक सरोवर था जिसमे स्नान करने के लिए चार सुंदरियां आईं। वस्त्रा उतारकर उन्होंने सरोवर में प्रवेश किया। राजा ने उनके वस्त्रा उठा लिये और इसी शर्त पर लौटाए कि उन चारों में से किसी एक को राजा के साथ विवाह करना होगा। मजबूरन, सबसे छोटी ने विवाह की स्वीकृति दे दी। तब राजा ने उसके साथ विवाह किया।

लोकदेवी जीण और हर्ष की जन्मभूमि

राजा को अपनी पहली रानी से दो पुत्रा हर्ष व हरकरण तथा एक पुत्राी जीण प्राप्त हुई। ज्येष्ठ पुत्रा होने के नाते हालांकि हर्ष ही राज्य का उत्तराधिकारी था लेकिन नई रानी के रूप में आसक्त राजा ने उससे उत्पन्न पुत्रा कन्ह को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संभवतः इन्हीं उपेक्षाओं ने हर्ष और जीण के मन में वैराग्य को जन्म दिया। दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव रूप में जन-जन में पूज्य हैं।

गोगाजी व कायमखां

इसी प्रकार लोकदेव गोगाजी और क्यामखानी समाज के संस्थापक कायम खां भी घांघू से संबंधित हैं। घंघरान के ही वंश में आगे चलकर अमरा के पुत्रा जेवर के घर लोकदेवता गोगाजी का जन्म जेवर की तत्कालीन राजधानी ददरेवा में हुआ। बाद में गोगाजी ददरेवा के राजा बने। गोगाजी ने विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी के खिलाफ लड़ते हुए अपने पुत्रों, संबंधियों और सैनिकों सहित वीर गति प्राप्त की। इसी वंश के राजा मोटेराव के समय ददरेवा पर फिरोज तुगलक का आक्रमण हुआ और उसने मोटेराय के चार पुत्रों में से तीन को जबरन मुसलमान बना लिया। मोटेराय के सबसे बड़े बेटे के नाम करमचंद था जिसका धर्म परिवर्तन पर कायम खां रखा गया और कायम खां के वंशज कायमखानी कहलाए।

ऐतिहासिक गढ़ और छतरी-
हालांकि हजारों वर्षों पूर्व के सुनहरे अतीत के चिन्ह तो घांघू में कहीं मौजूद नजर नहीं आते लेकिन लगभग 350 साल पहले बना ऐतिहासिक गढ और संुदरदासजी की छतरी आज भी गांव में मौजूद है। गांव में जीणमाता, हनुमानजी, करणीमाता, कामाख्या देवी, गोगाजी, शीतला माता सहित 7-8 देवी देवताओं के मंदिर हैं।

वर्तमान में घांघू

एक धर्मशाला तथा जलदाय विभाग के पंाच कुंए हैं जिनसे घर-घर जलापूर्ति होती है। पिछले वर्षाें में जलस्तर काफी गिरा है और पानी की सबसे बड़ी समस्या इसका खारापन है। स्थानीय राजकीय संस्थानों में एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, एक बालिका माध्यमिक विद्यालय, एक उच्च प्राथमिक विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र, पशु चिकित्सा केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, दूरभाष केंद्र, डाकघर, दो बैंक, 33 के वी विद्युत ग्रिड सब स्टेशन हैं। तीन निजी स्कूलें भी हैं। ग्राम पंचायत घांघू के अंतर्गत घांघू, बास जैसे का, दांदू व बास जसवंतपुरा आते हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक ग्राम की जनसंख्या 3 हजार 654 है। श्रीमती नाथीदेवी गांव की सरपंच हैं। निजी बसें एवं साधन पर्याप्त हैं लेकिन लोगों को राज्य पथ परिवहन निगम की बसें नहीं चलने का मलाल है।

प्रतिष्ठित व्यक्ति-
ग्राम के सर्वाधिक प्रतिष्ठित व्यक्तियों में पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह राठौड़, बंशीधर शर्मा, डीजी जेल पश्चिमी बंगाल, मो. हनीफ, डाॅ मुमताज अली, एथलीट बैंकर्स हरफूलसिंह राहड़, पवन अग्रवाल, ठा. भींवसिंह राठौड़ आदि हैं। राजनीतिक रूप से श्री महावीर सिंह नेहरा, ग्राम सेवा सहकारी समिति अध्यक्ष श्री परमेश्वर लाल दर्जी, लिखमाराम मेघवाल, जयप्रकाश शर्मा, चंद्राराम गुरी आदि सक्रिय हैं। बंशीधर शर्मा द्वारा पश्चिमी बंगाल में किए गए जेल सुधारों को विश्वस्तर पर सराहना मिली है। यहां के लक्खूसिंह राठौड़ श्रीलंका भेजी गई शांति सेना में शहीद होकर नाम अमर कर चुके हैं। श्रीमती नाथी देवी नेहरा वर्तमान में घांघू ग्राम पंचायत की सरपंच हैं।

सद्भाव
गांव की हिंदु मुस्लिम आबादी में अधिक अंतर नहीं फिर भी यहां लोगों के सांप्रदायिक सद्भाव की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। गांव में 60-70 दुकानें हैं, जिनसे रोजमर्रा के सामान की पूर्ति हो जाती है। ग्राम में शिक्षा का स्तर काफी बढ़ा है और लोग इस बात के लिए सचेष्ट होने लगे हैं कि उनके बच्चों को पढने के लिए अच्छा वातावरण और विद्यालय मिले। गत वर्षों में अकाल ने लोगों की कमर तोड़ी है लेकिन ग्रामीण सुखद भविष्य के लिए आशान्वित नजर आते हैं।
गांव कई रूटों से सड़क से जुड़ा हुआ है लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि यदि दक्षिण में बिसाऊ तक सड़क और बन जाए तो लोगों को खासी सुविधाएं मिल जाएं।

बेहतर भविष्य की आशाएं

ग्राम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी जय जीण माता फिल्म और धारावाहिक के निर्माण ने गांव को नई पहचान दी है। बहरहाल, कुछेक छुटपुट चीजों को दरकिनार कर दिया जाए तो गांव काफी अच्छी स्थिति में है। गांव का इतिहास और विकास दोनों ही इसकी पहचान हैं और वर्तमान स्थिति को देखते हुए भविष्य भी उज्जवल नजर आता है।

पुरातात्विक महत्व हो उजागर-
दसवीं शताब्दी में बसा गांव घांघू ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इसी काल के हर्ष, रैवासा और जीणमाता अपने पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के लिए खासे प्रसिद्ध हैं। हर्षनाथ से मिली पुरातात्विक सामग्री इतिहासवेत्ताओं के लिए खासी महत्वपूर्ण है। हर्ष और जीणमाता गांव से तो घांघू एकदम सीधे-सीधे संबंधित है। इसलिए यहां भी अगर पुरातत्वविदों की नजर पड़े और खुदाई की जाए तो संभव है कि कम से कम दसवीं शताब्दी के इतिहास से जुड़े काफी चीजें यहां मिल सकती हैं। इसी दृष्टि से हुई उपेक्षा के चलते गांव का समूचा गौरव मानो दफन होकर रह गया है। ग्रामीणों का मानना है कि सरकार को अपनी हैरिटेज योजनाओं में घांघू गांव को शामिल करना चाहिए तथा अगर यहां पुरातात्विक दृष्टिकोण से खुदाई हो जाए तो निश्चित रूप से दसवीं शताब्दी और संभवतः उससे भी पुराने इतिहास में कुछ नए पन्ने जुड़ सकते हैं।